इस चालीस पार का क्या ग़म मनाना इस चालीस पार का क्या ग़म मनाना
असहिष्णुता की धुंध में ओझल थे दोनों छोरों पर इकट्ठे लोगों के दुखी चेहरे शक और गलतफहमियों की आग में स... असहिष्णुता की धुंध में ओझल थे दोनों छोरों पर इकट्ठे लोगों के दुखी चेहरे शक और गल...
इसीलिए तू चश्मा है लगाती, इसीलिए तू चश्मा है लगाती,
आज की नारी की सोच को दिखाती सशक्त रचना। आज की नारी की सोच को दिखाती सशक्त रचना।
जहां सिर्फ तुम और हम रहेंगे, और बिना किसी डर के तुम्हें अपना कह सकेंगे। जहां सिर्फ तुम और हम रहेंगे, और बिना किसी डर के तुम्हें अपना कह सकेंगे।
मणि मुक्ता मंत्र व्यर्थ उर गहरे गड़ी मेख। मणि मुक्ता मंत्र व्यर्थ उर गहरे गड़ी मेख।